मित्रों, केदारनाथ धाम 12 ज्योतिलिंगों में से एक है। श्रद्धालु इस धाम के प्रति इतनी आस्था रखते है कि वे केदारनाथ मंदिर के दर्शन के लिए सैकड़ों किलोमीटर की पदयात्रा करने से भी नहीं चूकते। मित्रों, आज के विडिओ में हम आपको केदारनाथ मंदिर के रहस्य के साथ साथ इसका इतिहास और इससे जुडी पौराणिक कथा के बारे में बतायेंगे।
Do Watch:केदारनाथ मंदिर का पौराणिक इतिहास!,पांडवों ने क्यों बनवाया था केदारनाथ मंदिर? | Story of Kedarnath
इतना सुनने के बाद श्री कृष्ण ने कहा की कि ये बात सत्य है कि इतनी हत्यायो के बाद तुमलोग पाप के भागी बन गए हो, इन पापों से मुक्ति मिलना बहुत ही मुश्किल है। इसलिए इससे तो सिर्फ महादेव ही छुटकारा दिला सकते है। इसलिए हे पांडवों तुमलोगों को शिव की शरण में जाना चाहिए। इतना सुनते ही पांडवों के आँखों में एक चमक आ जाती है कि चलो इससे बचने का कोई तो मार्ग मिला।
लेकिन पांडव के सामने एक समस्या अभी भी थी कि 36 सालों तक युधिष्ठिर ने जहा हस्तिनापुर पर राज किया, अगर वे शिव के शरण में चले गए तो हस्तिनापुर का राजपाठ कौन संभालेगा ? इसी सब के बीच श्रीकृष्ण भी अपने परमधाम को लौट जाते है। पांडवों के ये एहसास होता है कि उनके बंधु, सखा, गुरु, पितामह, इन लोगों से पहले ही बिछड़ चुके हैं और माँ, पिता, ज्येष्ठ और काका ये लोग वन के लिए प्रस्थान कर चुके है, और अब मार्ग दिखाने वाले श्रीकृष्ण भी साथ नहीं रहे, ऐसे में अब पृथ्वी पर रहने का कोई अधिकार नहीं है। पांडव अपना सारा राजपाट परीक्षित को सौंप देते है। अगर परीक्षित के बारे में आप नहीं जानते तो परीक्षित अभिमन्यु के बेटे थे । राजपाट सौंपने के बाद पांडव द्रौपदी के साथ शिव की तलाश में निकाल जाते है।
महादेव पांडव से क्यों नाराज चल रहे थे ?
इधर शिव को सब पता रहता है कि पांडव उनके पास आने वाले है। महादेव पांडव से पहले ही नाराज चल रहे थे क्योंकि इस महाभारत में हजारों लाखों लोगों की जान गई थी इसलिए भगवान शिव पांडवों को अपना दर्शन देने के लिए इच्छुक नहीं थे।
पांडव शिव जी से आशीर्वाद लेने के लिए पहले काशी जाते है। लेकिन जैसे ही भगवान शिव को पता चलता है कि पांडव काशी आ रहे है, वे वहा से चले जाते है। इसके बाद भी पांडव ने और भी कई तीर्थ स्थलों पर जाकर भोलेनाथ को ढूँढने का प्रयास किया लेकिन वे असफल रहे।
अंत में हारकर वे हिमालय पर पहुचते है, इनके हिमालय पर पहुंचते ही शंकर भगवान वहा से गायब होकर केदार चले जाते है और वे एक बैल का रूप ले लेते है। जब पांचों पांडव और द्रौपदी जब केदार पहुचते है तो उनके लिए शिव जी को पहचाना बेहद ही मुश्किल हो जाता है क्योंकि वहा बहुत सारे गाय, भैंस और बैल पहले से ही मौजूद थे।
इसके बाद होता ये है मित्रों कि भीम अपना विशाल रूप धारण कर के वहा मौजूद दो पहाड़ों पर अपना पैर रख लेते है. इतने विशालकाय इंसान को देखने के बाद सारे पशु डर जाते है और वे भीम के पैरों के नीचे से ही भागने लगे। लेकिन उसमे से एक बैल ऐसा था जो भागने के बजाय धरती में समाता जा रहा था। फिर क्या था इसे देखते ही भीम ने उस बैल को पकड़ लिया।
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नंदी बैल के रूप में भगवान शिव की आराधना क्यों की जाती है ?
भीम उसकी पुंछ पकड़कर खींचने लगे तो बैल का धड़ सिर से अलग हो गया और उस बैल का धड़ शिवलिंग में बदल गया। पांडवों के इस दृढ़ संकल्प और एकजुटता से भगवान शंकर प्रसन्न हुए और तत्काल ही उन्हें दर्शन दिए। भगवान शंकर ने आशीर्वाद रूप में उन्हें पापों से मुक्ति का वरदान दिया। और तभी से इस मान्यता के मुताबिक नंदी बैल के रूप में भगवान शिव की आराधना की जाती है।
बैल जो कि शिवलिंग में परिवर्तित हुआ था, उसी शिवलिंग की पूजा-अर्चना पांडव ने उसी समय की और आज वहीं शिवलिंग केदारनाथ धाम के नाम से जाना जाता है। और पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां पांडवों को स्वर्ग जाने का रास्ता स्वयं महादेव ने दिखाया था इसलिए हिन्दू धर्म में केदार स्थल को मुक्ति स्थल भी माना जाता है और कुछ धार्मिक मान्यता ऐसी है कि अगर कोई केदार दर्शन का संकल्प लेकर निकले और उसकी मृत्यु हो जाए तो उस जीव को दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता है।
तो मित्रों, ये थी कहानी केदारनाथ धाम के बनने की, आपको ये विडिओ कैसी लगी हमे टिप्पणी कर के बताए और विडिओ पसंद आई हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ साझा करे बाकी अगर आप भागवत लीला के पेज पर नए है तो इसे फॉलो कर ले।