भगवत गीता में भागवान श्री कृष्ण कहते हैं की जन्म और मृत्यु पूर्णतः एक दूसरे पर निर्भर हैं। ये दोनों को कभी टाला नहीं जा सकता। जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है। चाहे वो इंसान हो, जानवर हो या कोई अन्य प्राणी।
हिंदू धर्म में शव का दाह संस्कार करने का नियम है और अंतिम संस्कार में शामिल होना पुण्य कर्म है।
मृत्यु के बाद जब परिजन और रिश्तेदार मृतक को श्मशान घाट ले जाते हैं तो उसे शवयात्रा कहा जाता है। जिस घर में किसी की मृत्यु हुई हो उससे 100 गज की दूरी तक के घरों के लोगों को अंतिम संस्कार में शामिल होना चाहिए और हर सक्षम व्यक्ति को अंतिम संस्कार में शामिल होकर कंधा देना चाहिए।
लेकिन उससे पहले हम आपको यह बता दें कि शवयात्रा देखने से भी आपकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि जब भी कोई अर्थी दिखे तो उसे दोनों हाथ जोड़कर सिर झुकाना प्रणाम करना चाहिए और साथ ही शिव का नाम भी लेना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार जो मृतात्मा इस संसार छोड़ कर जा रही होती है, वह अभिवादन करने वाले इंसान के तन-मन से जुड़े सभी दुःख और परेशानियां को अपने साथ ले जाती है।
ऐसा माना जाता है कि जब कोई व्यक्ति मरता है तो उसकी अंतिम यात्रा में उसके दुश्मन भी शामिल होते हैं क्योंकि मरने के बाद वो सारे मनमुटाव उस मृत व्यक्ति के साथ चले जाते हैं।
अंतिम यात्रा में शामिल होने के पुण्य
हिंदू धर्म के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी की अंतिम यात्रा में शामिल होता है और उसकी अर्थी को कंधा देता है, तो उस व्यक्ति को उसके हर कदम पर एक यज्ञ के समान पुण्य मिलता है और साथ ही वह व्यक्ति अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है। लेकिन ऐसा करते समय आपको इस बात का ध्यान रखना होगा कि जब आप शव को लेकर श्मशान घाट में प्रवेश करें तो किसी भी तरह का अनुचित व्यवहार न करें और न ही किसी बात का मजाक उड़ाएं। यदि कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार की अनुचित हरकतें करता है तो उसे समय आने पर भगवान को जवाब देना पड़ता है। साथ ही उसे यह भी समझ लेना चाहिए कि आखिरी वक्त में उसे भी यहीं पर ही लाया जाएगा।
क्योंकि इससे जुड़े रहस्य को धर्मराज युधिष्ठिर ने एक श्लोक में बताया है –
अहन्यहनि भूतानि गच्छंति यमममन्दिरम्।
शेषा विभूतिमिच्छंति किमाश्चर्य मत: परम्।।
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अंतिम संस्कार में शामिल होने वाले सभी को ये भी ध्यान में रखना चाहिए कि यदि कोई व्यक्ति किसी प्रकार का अनुचित कार्य करता है, तो उसे समय आने पर ईश्वर को जवाब देना होता है। साथ ही उसे यह भी समझ लेना चाहिए कि उसे भी अंतिम समय में यहां लाया जाएगा, तब क्षेत्रज्ञ देव उसके साथ क्या करेंगे, यह वही जानते हैं। फिर जब वह यमलोक पहुंचेगा, तब उसे यमदूत उसके इस कर्म के लिए सजा देंगे। मुक्तिधाम यम का क्षेत्र होता है, जहां पर यमदेव की ओर से एक क्षेत्रज्ञ देव नियुक्त होते हैं। प्रत्येक क्षेत्र के क्षेत्रज्ञ देव होते हैं और सभी के अलग-अलग कार्य होते हैं।
अंतिम संस्कार से वापस आते समय इन बताओ का धयान रखें
अंतिम संस्कार में शामिल हुए सभी को यह ध्यान रखना चाहिए कि श्मशान घाट से लौटते समय कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखें। बिना मुड़े अपने घर की चल देना चाहिए और रास्ते में किसी नदी या फिर तालाब में कपड़े पहने हुए ही स्नान-ध्यान करना चाहिए और मृत व्यक्ति के नाम पर जल अर्पण करना चाहिए और फिर घर की ओर चल देना चाहिए।
इसके साथ ही आपको इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि जब आप अंतिम संस्कार से लौट रहे हों तो आपको कभी भी चलो शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि जब तक मृत व्यक्ति जीवित था, तब तक उसका आपसे सीधा संबंध रहता था और मृत्यु के बाद वह व्यक्ति भूत बन जाता है जिसके कारण यदि आप लौटते समय चलो शब्द का प्रयोग करते हैं तो वह व्यक्ति भूत बनकर भी आपके साथ चल सकता है। इस कारण श्मशान से लौटते समय चलो शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
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वहीं, शास्त्रों में यह नियम है कि जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करता है, वह व्यक्ति अपने माता-पिता और गुरु के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को कंधा नहीं दे सकता है और न ही किसी व्यक्ति की शवयात्रा में शामिल हो सकता है। यदि वह व्यक्ति ऐसा करता है, तो उसका ब्रह्मचर्य भंग हो जाता है।
इसी प्रकार अंतिम संस्कार से लौटने के बाद नीम की दातून करनी चाहिए और फिर लोहा, आग, पानी और पत्थर को छूना चाहिए। दरअसल मनुष्य के स्थूल शरीर श्मशान घाट के संपर्क में आने से दूषित हो जाते हैं और श्मशान घाट से आने के बाद अगर आप इन चीजों को छूते हैं तो शरीर की अशुद्धियां खत्म हो जाती हैं।
वहीं जो लोग अंतिम संस्कार में शामिल होते हैं, उन्हें एक दिन का सूतक का पालन अवश्य करना चाहिए। जो व्यक्ति शव को छूता है, उसे 3 दिनों तक और जो अर्थी को कंधा देते है, उन्हें आठ दिनों तक सूतक का पालन करना चाहिए। और इस दौरान आपको किसी भी मंदिर में नहीं जाना चाहिए, किसी धार्मिक कार्य में भाग भी नहीं लेना चाहिए और किसी साधु को दान भी नहीं करना चाहिए।
शमशान घाट पर कौन से भागवान विरजमान होते हैं
श्मशान घात से जुड़ा एक महत्वपूर्ण धार्मिक पहलू यह है कि हिंदू धर्म के धार्मिक ग्रंथों में भगवान शिव और माता महाकाली को श्मशान घाट का देवता माना गया है। इस स्थान पर महादेव भस्म लगाकर ध्यान में लीन रहते हैं, वहीं इस स्थान पर मां काली बुरी आत्माओं पर नजर रखती हैं।
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव मृतकों को अपने भीतर समाहित कर लेते हैं और इस प्रक्रिया में अगर कोई भी बुरी शक्ति प्रभावित करने की कोशिश करता है, तो उसे मां महाकाली के कोप का सामना करना पड़ सकता है। यही कारण है कि रात्रि में श्मशान घाट से गुजरने से मना किया जाता है।
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