महाभारत में आपने सुना होगा कि अर्जुन को 12 साल के वनवास पर जाना पड़ा था और वो एकदम अकेले। लेकिन इसके पीछे क्या वजह थी? आईये जानते हैं पूरी कहानी। ये कथा तब से शुरू होती है जब पांडवों ने खांडव वन जलाने के बाद अपनी नई राजधानी इन्द्रप्रस्थ को बनाया था। एक नारद मुनि उनके यहाँ भ्रमण करने के लिए आए। उन्होंने सभी पांडवों से कहा कि “द्रौपदी तुम सभी की पत्नी है” आपको कुछ ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि वो सभी के साथ अलग-अलग समय बिता पाए। इससे आप सभी आपस में युद्ध भी नहीं करेंगे। अपनी बात समझाने के लिए उन्होंने शुंड और उप शुंड नाम के दो असुर भाईयों की कहानी सुनाई।
उन्होंने बताया कि इन दो भाइयों ने ब्रह्मा जी का तप किया और उनसे वरदान प्राप्त किया कि जब तक वह दोनों आपस में एक दूसरे को नहीं मारेंगे तब कोई भी उन्हें नहीं मार सकता। देवताओं को इसमें अपना फायदा दिखा। एक बार देवी देवताओं ने तिलोत्तमा नाम की एक अप्सरा को उन दोनों के पास भेजा। दोनों ही भाई उस अप्सरा की सुंदरता देखकर पागल हो गए और वो दोनों ही उसे पाना चाहते थे। इसलिए उन दोनों में आपस में फूट पड़ गई। दोनों ने एक दूसरे से लड़ते हुए, एक दूसरे को मार डाला।
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यह कथा सुनने के बाद पांडव आपस में विचार विमर्श करते हैं और नियम बनाते हैं कि जब पांचों भाइयों में से एक जब द्रौपदी के साथ बैठा होगा तब अन्य चार में से यदि कोई भी उन्हें देखेगा उसे बारह साल जंगल में बिताने होंगे और उसे पूरी तरह ब्रह्मचर्य का पालन भी करना होगा। इसमें यह भी तय हुआ कि एक-एक भाई द्रौपदी के साथ 1-1 साल का समय बिताएगा।
अर्जुन ब्राह्मण की मदद क्यों नहीं कर सकते थे ?
यह प्रक्रिया शुरू हो गई इसी बीच में एक दिन ऐसा भी आया जब कुछ लुटेरों ने ब्राह्मणों पर हमला किया और उनके पशुओं को धोखे से उठा ले गए। ब्राह्मण पार्शन होकर पांडवों के पास मदद के लिए गए, और दुखी मन से रोने लग गए। जब अर्जुन ने यह बात सुनी तो उन्होंने मदद करने का आश्वाशन दिया। लेकिन अर्जुन मदद कैसे करते, जिस कमरे में हथियार रखे थे वहाँ द्रौपदी और युधिष्ठिर थे। और वो चाहकर भी अंदर नहीं जा सकते थे।
लेकिन बिना हथियारों के वह गरीब ब्राह्मणों की मदद भी नहीं कर सकते थे। अर्जुन ने मदद का विचार बनाते हुए उस वक्त यही सही समझा कि उन्हें कक्ष में चले जाना चाहिए। वह बिना देर किए कमरे में प्रवेश कर जाते हैं। और वहाँ से हथियार ले आते हैं। अर्जुन जाकर ब्राह्मणों की मदद करते हैं और उनके पशुओं को लुटेरों से बचाकर वापस ले आते हैं।
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जब वह अपने महल लौटे तो सभी ने उनको बधाई दी। ब्राह्मण उन्हें खूब आशीर्वाद देते हैं क्योंकि बिना अपनी चिंता किए वह उनके पशुओं को बचाने के लिए निकल पड़े थे।लेकिन इसके बावजूद अर्जुन ने युधिष्ठिर से कहा कि अब मुझे वनवास पर चले जाना चाहिए। आप मुझे अनुमति दे, क्योंकि मैंने नियमों का उल्लंघन किया है इसलिए मैं यहाँ रहने लायक नहीं हूँ। मैंने जो व्रत लिया है मैं उसका पालन अवश्य करूंगा।
लेकिन युधिष्ठिर उनसे कहते हैं तुम्हें वन जाने की कोई जरूरत नहीं है, तुमने जो किया उसमें तुम्हारी नियत बिल्कुल खराब नहीं थी। लेकिन अर्जुन उनकी बात नहीं मानते और कहते हैं यदि मैं इन नियमों का पालन नहीं करूंगा तो ये उचित नहीं होगा।अर्जुन कहते हैं मेरे मन में कोई भी नाराजगी नहीं है। मैंने जो किया वह गलत है। अर्जुन ने जो वादा किया था उसे निभाने के लिए वह अपने फैसले पर अड़े रहे।
जिसके बाद वह अपने बड़े भाई से आज्ञा लेकर 12 साल के लिए वनवास पर चले जाते हैं। क्या आपको अर्जुन की इस कथा के विषय में पता था? हमें कमेन्ट में जरूर बताएं। साथ ही विडिओ को लाइक और शेयर करना बिल्कुल नहीं भूले।