मित्रों अक्सर आपने लोगों को अपने पितरों को पिंडदान करते हुए देखा होगा ताकि पिंड की मोह माया छूटे और वह अपने आगे की यात्रा पूरी कर सके लेकिन क्या आप जानते हैं पिंडदान होता क्या है और क्यों हिंदू धर्म में बच्चों के पिंडदान की मनाही है?
दरसल दोस्तों ” पिंड ” शब्द का अर्थ होता है किसी वस्तु के गोलाकार रूप , जिसे प्रतीकात्मक रूप से शरीर कहा जाता है …जोकि पके हुए चावल को काले तिल के साथ मिलाकर बनाया जाता है और इन्हे पूर्वजों के नाम से चढ़ाया जाता है ताकि पितरों को शांति और मोक्ष मिल सके | गरुण पुराण के मुताबिक पिंडदान परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु के बाद की शांति के लिए किया जाने वाला एक पवित्र अनुष्ठान है…….
क्यों नहीं होता बच्चों का पिंडदान?
दोस्तों सनातन धर्म में मृत्यु के बाद प्रेत योनि से बचने के लिए पितृ तर्पण का बहुत ही ज्यादा महत्व है क्यूंकि पूर्वजों के किए गए तर्पण से उन्हें मुक्ति मिल जाती और वह प्रेत योनि से मुक्त हो जाते है| लेकिन अकसर आपने देखा होगा की जब बच्चों की मृत्यु हो जाती है तो ना ही उनका पिंडदान होता है और ना ही उन्हें जलाया जाता है | अब आप सोच रहे होंगे ऐसा क्यों है तो आपको बता दे दोस्तों पुराणिक मान्यताओं के अनुसार साधु संत और बच्चों का पिंडदान नहीं होता है , क्योंकि शास्त्रों में इन्हें सांसारिक मोह माया से अलग माना गया है ना उन्हें संसार की किसी चीज का मोह होता है और ना ही उसकी अभिलाषा |
क्या है बच्चों के श्राद्ध के नियम ?
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दोस्तों बच्चों के श्राद्ध को लेकर लोगों के मन में प्रश्न उठता आरहा है कि उनका श्राद्ध होना चाहिए या नहीं ? और यदि होता है तो किस उम्र तक के बच्चे श्राद्ध के दायरे में आते हैं और जिनका श्राद्ध नहीं होता है उनकी और कौन सी क्रियाये की जा सकती है? वेल तो सबसे पहले आप ये जान ले की बच्चों के श्राद्ध की प्रक्रिया में उम्र की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है | मृतक बच्चे की उम्र के हिसाब से यह तय किया जाता है कि उसका श्राद्ध होना है या नहीं, इस लिहाज से जिन बच्चों की आयु 2 वर्ष या उससे कम होती है उनका श्राद्ध या फिर वार्षिक विधि का विधान हमारे शास्त्रों में सही नहीं है, साथ ही 10 वर्ष से कम आयु की कन्याओं के साथ भी यही नियम लागू होता है… शास्त्रों में उनका भी श्राद्ध और वार्षिक तिथि करने की मनाई है | हालांकि बालक की उम्र 6 वर्ष से अधिक है और कन्या की आयु 10 वर्ष के करीब है तो इनका श्राद्ध तो नहीं हो सकता परंतु इनकी मलीन षोडशी क्रिया की जा सकती है जोकि मृत्यु के 10 के भीतर मृत्युपरांत की जाने वाली क्रिया को कहा जाता है |
इसके अलावा मित्रों जिन बालकों की आयु 6 वर्ष से अधिक होती है उनकी मृत्युपरांत की संपूर्ण क्रियाएं विधि विज्ञान के साथ की जा सकती हैं | वही 10 साल से ज्यादा की उम्र की कन्याओं की श्राद्ध प्रक्रिया भी हो सकती है, जिनमें मलिन षोडशी , एकादशी और संपीडन जैसी क्रियाएं शामिल है | और तो और अगर किसी कारण वर्ष तिथि याद ना हो मृत बच्चों के श्राद्ध करने के लिए त्रयोदशी के दिन को शुभ माना जाता है और इस दिन पूरे विधि विधान के साथ बच्चों का श्राद्ध किया जाता है |
कहाँ – कहाँ का होता है पिंडदान और क्यों?
Do Watch:हिन्दू धर्म में बच्चे की मृत्यु के बाद पिंडदान क्यों नहीं किया जाता ? | Pinddan Kyon Nahi Kiya Jata
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