आप सभी के मन में ये ख्याल कभी ना कभी तो आया ही होगा कि आखिर रामसेतु को रावण कि सेना पार क्यूँ नहीं कर सकती थी। हम सभी जानते हैं कि जब भगवान राम ने समुद्र पार करने के लिए एक पत्थरों के पुल का निर्माण किया था, जीसे सीधा लंका तक जोड़ा गया था, किन्तु रावण ने जानते हुए भी उन्हें रोकने का प्रयास क्यूँ नहीं किया। आखिर क्यूँ रावण ने वानरों को पुल बनाने से नहीं रोका। आज के वीडियो में हम आपको इससे ही जुड़ी एक कहाणु सुनाने जा रहे हैं।
Do Watch:रामसेतु को क्यों पार नहीं कर सकती थी रावण की सेना ? | Why Ravana’s army could not cross Ramsetu
रामसेतु की सच्चाई क्या है?
तब प्रभु श्री राम अपनी पत्नी सीता को रावण से छुड़ाने के लिए युद्ध का फैसला करते हैं। माता सीता को बचाने के लिए प्रभु राम प्रण लेते हैं कि, वो वानर सेना कि सहायता से अपनी पत्नी को रावण के चंगुल से मुक्त करवाएंगे और उसका सर्वनाश कर देंगे। इसी बीच सबसे बड़ी समस्या ये आ गई कि आखिर इतनी बड़ी वानर सेना के साथ समुद्र पार कैसे किया जाए। क्योंकि रावण कि लंका समुद्र के दूसरी तरफ स्थित थी। हर किसी के मन में बस यही विचार आ रहा था कि इस विशाल समुद्र को पार कैसे किया जाए। तभी प्रभु राम ने इस समस्या से निपटारा पाने के लिए सबसे पहले समुद्र देव कि सहायता लेने की सोची। इसके लिए उन्होंने समुद्र देव को प्रकट होने के लिए तपस्या शुरू कर दी। लेकिन कई दिनों तक तपस्या करने के बावजूद समुद्र देव उनके सामने प्रकट नहीं हुए, इससे भगवान राम क्रोधित हो गए। क्रोध में आकर भगवान राम ने अपने धनुष बाण निकले और समुद्र पर उसे चलने ही वाले थे, कि तभी समुद्र देव प्रकट हो गए।
और बोले, छमा करें प्रभु, क्रोध में ऐसा अनर्थ मत करिए । आप तो सर्वज्ञानी हैं और महाशक्तिशाली भी। आपके पास तो खुद ऐसी शक्ति है, जो आपको सरलता से लंका तक ले जाएगी। इसलिए समुद्र पार करने के लिए आपको मेरी सहायता की क्या जरूरत हैं। आपकी वानर सेना में ही मौजूद नल और नीर ही आपको लंका तक ले जाएंगे। ये सुनकर भगवान राम उनसे प्रश्न करते हुए कहते हैं, कि आखिर ये कैसे संभव है। नल और नील कैसे इतनी बड़ी वानर सेना को समुद्र पार पहुंचा पाएंगे। इसपर समुद्र देवता एक कहानी सुनाते हुए कहते हैं कि नल और नील बचपन में बेहद शरारती थे, दोनों हमेशा कुटिया से ऋषियों का सामान ले जाते थे और नदी में फेंक देते थे। इससे परेशान होकर एक दिन एक ऋषि ने उन्हें श्राप दे दिया कि जब भी तुम दोनों नदी में कोई चीज फेंकोगे, तो वो समान नदी में डूबेगा नहीं, तैरता रहेगा। इसलीय आप नल और नील कि सहायता से लंका तक पहुँच सकते हैं। आप अपनी वानर सेना कि सहायता से मेरे ऊपर पथरों का एक पुल बनाइये। समुद्र देव कि सलाह पर अब भगवान राम ने नल और नील कि सहायता से समुद्र पर पुल बनाने का कार्य शुरू कर दिया था। तब सभी वानर मिलकर छोटे बड़े पत्थर एक एक कर इकट्ठा करके ला रहे थे। नल और नील कई सहायता से पुल तैयार कर दिया गया। पुल बनाते समय हनुमान जी कि सलाह पर वानरों ने सभी पत्थर पर श्री राम का नाम लिखा.. जिसके बाद नल और नील उन पत्थरों को पानी में फेक दे रहे थे। पथरों पर श्री राम का नाम होने कि वजह से ही आज भी इस पुल को राम सेतु के नाम से जाना जाता है।
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किन्तु जब ये पुल बनाया जा रहा था तब भगवान राम को मन में एक सवाल खाए जा रहा था। इससे परेशान होकर उन्होंने नल और नील से सवाल पूछ ही लिया। प्रभु राम उनसे बोले, ये पुल बना कर हम लंका तक तो पहुँच जाएंगे, लेकिन क्या हम इस पुल कि सहायता से वापस आ पाएंगे। अगर रावण कि सेना ने इस पुल को तोड़ने का प्रयास किया तो। इस प्रश्न पर नल और नील ने कहा कि प्रभु हम आपको इस बात का आश्वासन देते है कि, इस पुल के जरिए आपकी सेना तो वापस आ जाएगी, किन्तु अगर रावण कि सेना इस पुल पर आई तो ये पुल डूब जाएगा। और हमारी सेना में तो सभी वानर है। वानरों कि एक खासियत होती है कि वो कभी जमीन पर अपने पैर दबाव डालकर नहीं चलते। और उनका वजन भी ज्यादा नहीं होता। इसलिए ये पुल नहीं डूब सकता। इसके साथ ही हमने पुल का निर्माण भी इस तरह किया है कि वानर इसके ऊपर से छलांग मारते हुए निकल जाएंगे, किन्तु अगर रावण कि सेना आई तो ये पुल डूब जाएगा। इसका औचित्य यह है कि रावण कि सेना में सभी राक्षस हैं, और वो शरीर में भी काफी भारी है। इसलिए अगर वो पुल तोड़ने का प्रयास भी करेंगे या इस पुल पर चढ़ने कि भी कोशिश करेंगे तो पत्थर नदी में डूबते चले जाएंगे और सभी राक्षस पानी में डूब जाएंगे।