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Monday, July 8, 2024

विभीषण का जन्म ब्राह्मण-राक्षस परिवार में हुआ था। उसके पिता महान ऋषि विश्रवा व माँ राक्षसी कैकसी थी। उसके दो बड़े भाई लंकापति रावण व कुंभकरण तथा एक बहन शूर्पनखा थी। इसके अलावा उसके कई और सौतेले भाई-बहन भी थे।

विभीषण जी की मदद से ही रावण का वध हुआ था, जिस कारण भगवान श्रीराम ने खुद विभीषण जी को लंका का राजा बनाया और चिरंजीवी होने का वरदान भी दिया, जिस कारण विभीषण की मृत्यु संभव नहीं हो सका और ये आज भी जीवित हैं। लेकिन हम सभी को ये जानना है कि चिरंजीवी विभीषण जी इस कलयुग में कहां रहते हैं।

सरमा कौन थी

विभीषण का विवाह सरमा नामक स्त्री से हुआ था। कुछ मान्यताओं के अनुसार जब माता सीता अशोक वाटिका में थी तब उनकी सहायता करने वाली त्रिजटा  विभीषण की ही पुत्री थी।

दरअसल रामायण की कथा तो हम सभी लोग जानते हैं। रामायण में जब राक्षस राज रावण ने माता सीता का हरण कर लिया, तब उन्हें अशोक वाटिका में रखा। अशोक वाटिका में माता सीता की देखभाल के लिए रावण ने विभीषण की पुत्री त्रिजटा को रखा क्योंकि यहीं अशोक वाटिका की प्रमुख पहरेदार थी। बाद में ये माता सीता की सखी बन गई और त्रिजटा के रहने से ही माता सीता को थोड़ा सा सुकून मिलता था। त्रिजटा ही माता सीता को राम-रावण युद्ध के परिणामों को बताती थी। विभीषण जी एक राक्षस कूल के थे लेकिन भगवान् नारायण के बहुत बड़े भक्त थे इसलिए उनकी पुत्री भी भगवान् नारायण की भक्त थी। इसीलिए उसने माता सीता का पूरा ख्याल रखा।

जब विभीषण के बताए तरीके से रावण का वध हुआ, तो भगवान राम उससे बहुत प्रसन्न हुए। भगवान श्री राम के भक्त होने के कारण विभीषण जी इनसे मिलने लंका से अयोध्या आया करते थे। कुछ वर्षों के बाद जब प्रभु श्री राम के अपने धाम जाने का समय आया तो विभीषण जी दुःखी होकर प्रभु से कहने लगे कि हे प्रभु आपने मुझे चिरंजीवी होने का वरदान दिया है और आप इस लोक को छोड़कर जा रहें हैं। मैं आपके दर्शन के बिना एक दिन भी नहीं रह सकता तो आप ही बताइये अब मेरा क्या हाल होगा? तो आप बताइए यहाँ रहकर में आपके दर्शन कैसे करूँगा?

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तो भगवान श्रीराम ने कहा कि तुम लंबे समय तक हमारे कुल देवता भगवान जगन्नाथ की पूजा करोगे और कलयुग के अंत में तुम मुझमें विलीन हो जाओगे। उन्होंने कहा कि तुम मुझे भगवान जगन्नाथ जी के रूप में देखोगे, जो विशाल समुद्र के तट पर एक मंदिर के रूप में होगा, उसके अंदर की मूर्ति मेरा रूप ही होगा और तुम मेरे उस रूप को सबसे पहले पूजा करोगे।

विभीषण जी नतमस्तक हो गए और उन्होंने सोच लिया कि आने वाले समय में भगवान जगन्नाथ जो स्वयं श्री राम होंगे, जिनके दर्शन प्राप्त होते रहेंगे। भगवान श्रीराम विभीषण जी को यह बताकर अपने बैकुंठ लोक यानी बैकुण्ठ धाम को चले गए। भगवान श्री राम के वरदान स्वरूप विभीषण जी यहाँ धरती पर रह गए।

अब कहा रहते है  विभीषण जी

विभीषण जी अभी भी लंका में रहते हैं। बहुत से लोग जानते हैं कि रोज सुबह जगन्नाथजी की सबसे पहली पूजा विभीषण जी ही करते हैं। इस सच्चाई को जानने के लिए हमें एक कथा को जानना होगा।

यह प्राचीन समय की बात है। एक दिन विभीषण जी हमेशा की तरह भगवान श्रीजगन्नाथ के दर्शन के लिए उनके मंदिर पहुंचे और उनके दर्शन किये। रोज की तरह ही भगवान जगन्नाथ ने स्वयं उन्हें दर्शन दिये।

तब विभीषण जी ने उनके सामने प्रार्थना की कि हे प्रभु, मैं इतने दिनों से प्रतिदिन आपके दर्शन के लिए लंका से यहां आता हूं। अब आपसे प्रार्थना है कि एक बार मेरी लंका में भी अपने पवित्र चरण रखें, जिससे मैं कृतज्ञ हो जाऊँ और मेरी लंका भूमि भी जगन्नाथ पुरी के समान पवित्र हो जाये। भगवान जगन्नाथ तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गये।

कुछ दिनों के बाद वह समय आया गया जब भगवान जगन्नाथ लंका के लिए प्रस्थान करने वाले थे। आपको बता दें कि जगन्‍नाथ पुरी और लंका के रास्ते में एक मठ है जहां उनके एक महान भक्‍त रहते थे, जिनका नाम बलराम दास था। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान जगन्नाथ लंका के लिए निकले तो उन्होंने सोचा कि क्यों न अपने भक्त बलराम दास को भी दर्शन देते चलू। भगवान जगन्नाथ को अपने मठ में देख बलराम दास बहुत प्रसन्न हुए। तब भगवान जगन्नाथ ने बताया कि मैं विभीषण को दर्शन देने के लिए लंका जा रहा हूं। तब बलराम दास ने प्रार्थना की कि हे प्रभु, मुझे भी अपने साथ लंका ले चलिए और भगवान जगन्नाथ मान गये।

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लंका जाने से पहले भगवान जगन्नाथ ने बलराम दास को एक सुराही दिया, जो सोने का था। देते समय इन्होंने कहा कि वापस जाते वक्त में इसे लेते जाऊंगा। कुछ समय बाद बलराम दास और भगवान जगन्नाथ दोनों लंका पहुंचे, विभीषण जी ने दोनों का स्वागत किया और अत्यंत दुर्लभ फूल, काली जूही के फूल से बनी एक माला भगवान जगन्नाथ के गले में पहना दी। भगवान बहुत प्रसन्न हुए और फिर उन्होंने लंका और उसके निवासियों को आशीर्वाद दिया और फिर अपने धाम के लिए प्रस्थान कर गए।

वापस आते हुए भगवान जगन्नाथ ने बलराम दास को कहा कि मैं अपने निवास स्थान वापस जा रहा हूं और तुम भी अपने आश्रम को जाओ। बलरामदास खुशी-खुशी अपने मठ में चले गए और आराम करने लगे। जब बलरामदास जी फिर उठे तो देखा कि घड़ा वहीं रह गया है। यह घड़ा भगवान ने मुझे लंका जाते समय दिया था और किसी भी तरह मैं इसे वापस नहीं कर सका।

इधर जगन्नाथ पुरी मंदिर में उस सोने की सुराही को लेकर हाहाकार मच गया। लोग आपस में बातें कर रहें हैं। अरे भाई ऐसा कैसे हो सकता है? भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के बगल का बर्तन कैसे गायब हो गया? सभी परेशान हो गए।

उस समय जगन्नाथपुरी के एक राजा प्रताप रुद्र थे। यह समाचार राजा प्रताप रुद्र तक पहुँच गया। तब प्रतापरुद्र को लगा कि किसी चोर ने भगवान जगन्नाथ का मटका चुरा लिया है।

यह बात पूरे राज्य में जंगल की आग की तरह फ़ैल गया गई और जब बलराम दास जी ने यह बात सुनी तो उन्हें पता चला कि यह मटका भगवान जगन्नाथ जी का है। तब वह दौड़ता हुआ जगन्नाथ पुरी में राजा प्रतापरुद्र के पास पहुंचा और कहा कि यह मटका मुझे स्वयं भगवान ने दिया है। परंतु प्रतापरुद्र को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ।

उन्होंने बलराम दास को चोर समझ लिया और उन पर चोरी का आरोप लगा दिया। इस पर बलराम दास जी रोने लगे और उन्होंने राजा रूद्र प्रताप को अपने साथ घटी सभी घटनाओं को बताया। उन्होंने कहा कि लंका में विभीषण जी ने भगवान जगन्नाथ को काली जूही के फूलों की की माला पहनाई थी। इस बात का पता लगाने के लिए राजा रूद्र प्रताप जगन्नाथ जी के मंदिर में पहुंचे और जैसे ही उन्होंने देखा कि जो माला बलराम दास ने बताई थी वह सचमुच भगवान जगन्नाथ के गले में है।

विभीषण जी सबसे पहले क्यों करते है भगवन जगन्नाथ की पूजा

राजा ने बलराम दास जी से माफ़ी मांगी और कहा कि मुझसे बहुत बड़ी गलती हुई जो मैंने भगवान जगन्नाथ के इतने बड़े भक्त पर चोरी का आरोप लगाया। बलरामदास जी ने उन्हें क्षमा कर दिया और प्रतापरुद्र को यह भी बताया कि विभीषण जी प्रतिदिन सबसे पहले भगवान जगन्नाथ जी की पूजा करने आते हैं।

तब से लेकर आज तक यही माना जाता है कि विभीषण जी मंदिर के कपाट खुलने से पहले ही यहाँ आकर भगवान जगन्नाथ जी की पूजा करते हैं क्योंकि उन्हें प्रभु श्री राम ने वरदान दिया था कि सबसे पहले तुम मेरे दर्शन करोगे। विभीषण जी को कोई खुली आँखों से नहीं देख सकता है।

विभीषण जी के पास जो शरीर है वह एक दिव्य शरीर है। इन्हें खुली आंखों से नहीं देख सकते, इसके लिए आपके पास दिव्य दृष्टि होनी चाहिए। जब भी उनकी रथयात्रा जगन्नाथ पुरी से निकलती है तो उनकी रथयात्रा को गरुड़ स्तंभ के पास कुछ देर के लिए रोक दिया जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि हमेशा की तरह विभीषण जी सबसे पहले भगवान जगन्नाथ की पूजा करेंगे। फिर रथयात्रा को आगे बढ़ाया जाएगा. इस पौराणिक कथा से ज्ञात होता है कि विभीषण जी आज भी इस पृथ्वी पर जीवित हैं। प्रभु श्री राम की कृपा से लंका में ही है। उन्हें कोई नहीं देख सकता क्योंकि उन्होंने दिव्य स्वरूप प्राप्त कर लिया है।

हालाँकि कुछ अन्य पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि विभीषण जी श्रीराम व अन्य लोगों के साथ पुष्पक विमान पर बैठकर अयोध्या गए। वहां जाकर उन्होंने उनका राज्याभिषेक देखा व कुछ दिन अयोध्या में व्यतीत करने के पश्चात पुनः लंका लौट गए। विभीषण ने लंका में धर्म का शासन स्थापित किया तथा कई वर्षों तक राज करने के बाद अपने देह का त्याग कर दिया।

 

 

 

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